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कारपोरेशन खड़ा बाजार में…..

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राजीव नारायण तिवारी ‘राजीव मतवाला’ उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन बरेली में कार्यरत है| निजीकरण को लेकर पॉवर कारपोरेशन के कर्मचारी, सरकार के खिलाफ धरने देकर विरोध दर्ज कर रहा है| ऐसे में जहां पूरा कारपोरेशन धरना देकर सरकार पर दबाव डाल रही है कि सरकार गलत कर रही है, वही ‘राजीव मतवाला’ ने अपनी बेबाकी से अधिकारियो और कर्मचारियों को कटघरे में लेकर कुछ प्रश्न खड़े कर दिए हैं….
इतिहास गवाह है कि भारत वर्ष में जितने राष्ट्रभक्त नहीं हुए, उससे कहीं ज्यादा गद्दार हुए है, जिसके चलते भारतीय नागरिकों को दोयम दर्जे का जीवन जीना पड़ा है। जानते हैं क्यों…? हम भारतियों को समस्त चीजों के कीमत का ज्ञान होता है किन्तु उसका महत्व कितना है यह नहीं जानते,  और जानना भी नहीं चाहते। आज पावर कारपोरेशन बड़े दुर्दिन परिस्थितियों से गुजर रहा है। यानी ‘पावर कारपोरेशन खड़ा बाजार में’ की तर्ज पर है। क्या इसका आभास आप समस्त कर्मचारियों को नहीं था? यदि था तो हम किस चीज का इन्तजार करते रहे? बरबाद होने का… आबाद होने का या— शायद दोनों का।
विशाल मगध राज्य का राजा घनानंद, छोटे राज्यों की मदद न करना अपनी महानता समझता है। चाणक्य के जोर देने पर भी, घनानन्द चाणक्य को दुत्कार देता है और कहता है कि जब सिकन्दर हम पर आक्रमण करेगा तो हम देख लेंगे। इस तरह टुकड़ों में बंटे हुए राज्य गुलाम होते चले गए। कुछ ऐसा ही हम कर्मचारियों ने भी किया है। इस विभाग को लुटने वाले को इस बात की चिन्ता नहीं है कि पावर कारपोरेशन प्राइवेट होने जा रहा है। चिन्ता इस बात की है कि ऊपरी इन्कम कैसे होगी? और प्राइवेट के बाद क्या होगा। अधिकाँश कम्पनियाँ, अधिकारियों को तो नहीं लेना चाहेंगी। क्यों… उत्तर सभी को मालुम है। इसीलिए अभियनता वर्ग संयुक्त रूप से धरना प्रदर्शन कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है।
       इसी अभियन्ता वर्ग ने कभी भी अपने कर्मचारियों का साथ नहीं दिया, जिसका परिणाम ये है कि आज के दौर में एक अभियन्ता के पास बमुश्किल एक कार्यालय सहायक हैं। निविदा पर कार्य सम्पादित किया जा रहा है। अभियन्ता वर्ग ने निविदा के नाम पर धन उगाही भी की है, और इसमें सबसे महत्व पूर्ण भूमिका कार्यालय सहायक की ही रही है और यह भूमिका एक कुत्ते की माफिक रही है। बिलकुल इस तरह कि जैसे एक राजा भोजन कर रहा होता है और दूर उसका वफादार कुत्ता देख  रहा होता है। ऐसे में एक रोटी का टुकड़ा फेंकते हुए राजा कहता है कि ले, तू भी ले ले। कुछ ऐसा ही जीवन, हमारे कार्यालय सहायक वर्ग का रहा है। चन्द सिक्कों के लिए अपना जमीर बेचने वाला कार्यालय सहायक और अभियन्ता वर्ग की तिजोरी भरने वाला कार्यालय सहायक ही है। देर रात तक काम करना, अधिकारी को खुश करना, रागदरबारी करना जैसे कई कृत पेशेवर कृत की भाँति होना भी कार्यालय सहायक का हाथ रहा हैं। एक खासियत और भी रही है कि अपना अकड़ दिखाने के लिए, उपभोक्ता से तमीज से बात न करना, काम पूर्ण होने की स्थिति में भी कानूनी बाधा डालना आदि भी रहा है। आज यही बाबू वर्ग अपने दुर्दिन पर रो रहा है क्योंकि इसने अपने विरादरी भाई को तिरस्कृत करने का भी वीड़ा जो उठाया है।
जिस अभियंता ने खून चूसा… तिरस्कार किया… बहिस्कार भी किया है… आज उसी अभियन्ता वर्ग के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। यह जानते हुए कि अभियन्ता वर्ग कभी भी कार्यालय सहायक का हितैषी नहीं रहा है। आज कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए एक जुट हैं। यह भलीभाँति जानते हुए भी कि पावर कारपोरेशन को प्राइवेट होने से कोई नहीं रोक पाएगा। हाँ यह कटु सत्य है मित्रों! जब हम एक लाख  से अधिक कर्मचारी होकर, पूर्व में 24 दिन की हड़ताल कर व वेतन कटवाकर परिषद से निगम होने, फिर डिस्काम होने से नहीं रोक सके तो क्या आज सिर्फ 32000 कर्मचारी मिलकर प्राइवेट होने से रोक लेंगे। बिलकुल नहीं रोक पाएंगे, क्योंकि इस 32000 में 25000 कर्मचारी गद्दार हैं व भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं।
       अब प्रश्न है यह कि शेष 8000 कर्मचारी कर क्या लेंगे इनमें से आधे कुछ करने लायक ही नहीं हैं। संगठन पोस्टर चस्पा कर लिखता है कि जो कर्मचारी धरने का समर्थन नहीं करेंगे, उसे गद्दार कहा जाएगा व जयचंद का प्रमाणपत्र दिया जाएगा।
कितना हास्यापद लगता है कि जयचंद का कार्य करने वाला ही जयचन्द का प्रमाणपत्र जारी करेगा। संगठन चाह लेता तो आज यह स्थितियां देखने की नौबत न आती। संगठन, अभियन्ता वर्ग का हमेशा से हिमायती रहा है| संगठन ने कभी यह प्रश्न करने की कोशिश ही नहीं की कि बिना मीटर के कनेक्शन क्यों दिया जा रहा है आदि आदि आदि। बहुत से प्रश्न है…..?
       मैं स्वयं संगठन में मंत्री व अध्यक्ष  रह चुका हूँ। कटु अनुभव रहा है कि मैंने तलुए नहीं चाटे, हिस्सेदारी का अंग नहीं बना, ईमानदारी से विरोध किया तो संगठन ने ही मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस तरह एक के बाद एक संगठन से जुड़ता रहा। चाहे वह कर्मचारी मोर्चा संगठन रहा हो, चाहे विधुत कार्यालय सहायक संघ। लबोलबाब सबका एक ही हाल रहा है। मेरा गलत ढंग से फैजाबाद से बरेली स्थानान्तरण भी हुआ | प्रबंध निदेशक अरुण प्रताप सिंह ने यह जानने की कोशिश नही की, कि मेरे प्रति जो शिकायत की गई उसमें सत्यता कितनी है| और ना ही किसी संगठन ने यह बीड़ा उठाने की कोशिश की कि एक ईमानदार कर्मचारी के साथ खड़े हो सके और दबाव डाल सके कि ऐसा नहीं होना चाहिए। मगर अफसोस लोग खुश हैं कि मेरे किए की सजा मुझे मिल गई है। हाँ,  मैं दावे के साथ  एक संगठन की बात बड़े जोर दार ढंग से रखना चाहूँगा और वह संगठन है अवर अभियन्ता संगठन। एक किवदन्ती है कि एक कौआ बिजली के तार पर जानबूझ कर लटक रहा था, मर गया। उसके एक दूसरे कोए मित्र ने देख  लिया और काँव-काँव करने लगा। देखते ही देखते सैकड़ो कौए आ गए और काँव-काँव करने लगे।
       इसको कहते है संगठन… गलती किसकी है और कैसे हुई,  कोई लेना देना नहीं। बस कौआ हमारा मित्र है, भाई है, सो हमें संगठित रहना है। भले ही वह मित्र की गलती रही हो। कुछ इसी तरह का संगठन है अवर अभियनता संगठन। कोई आवाज भी ऊँची करके तो देखे… एक काल पर कार्यालय को घेरने का दम रखते हैं और इसी कारण अपनी बात मनाने का भी हौसला रखते हैं, और जिसका फायदा उन्हें मिला है। कल तक यही जेई से नियुक्त होकर जेई पर ही रिटायर्ड हो जाते थे पर आज कम से कम अधिशाषी अभि. तक इन्हें कोई नहीं रोक सकता।
बाबू… बाबू ही रह गया क्योंकि संगठन नाम की चीज इनके खून में ही नहीं है। इतना ही नहीं…. कार्यालय सहायक, अभियन्ता वर्ग को खुश करने में अपनों को ही कानून का पाठ पढ़ाने लगते हैं जिसका नतीजा है आज दो कौड़ी में भी इसकी गिनती नहीं होती। छोटे कर्मचारी भी इन्हें दोयम दर्जे का कर्मचारी मानने लगे है|
सच तो यह है इंजीनियर वर्ग ने पावर कारपोरेशन का जितना नुकसान पहुँचाया है उतना शायद ही किसी ने पहुँचाया हो…
       आज पावर कारपो. लगभग रोज का 8 करोड़ के आस-पास का घाटा उठा रहा है। यह जानते हुए भी कि पूरे बाजार में हमारे अलावा कोई सुई बेचने वाला नहीं है फिर भी हम घाटा उठा रहे हैं। इसका जिम्मेदार कौन है? हम कर्मचारी गण। सो इसे बिकना तो है ही… आज नहीं तो कल, ये बिकेगा, चाहे जितना धरना दे लो… कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि इसमें दीमक लग चुका है।
मित्रों! बातें तो बहुत हैं कहने को पर मेरे कहने से क्या होगा। अपने अन्तर में झांकिए, सारे सवाल के उत्तर मिल जाएंगे। हाँ,  मेरे उक्त बातों से आपके दिमाग में सवाल उभर रहें होंगे कि जो इल्जाम मैंने लगाए है उसका सबूत क्या है तो मित्रों समुन्द्र में मछली को पानी पीते हुए यदि आप मुझे दिखा दें तो मैं आपको सबूत भी दे दूँगा। अधिकांश कर्मचारियों को मेरे आलोचना/ समालोचन से ठेस पहुँची होगी, उन मित्रों से क्षमा याचना की अपेक्षा करता हूँ।
आपका
अल्पज्ञानी कर्मचारी मित्र
राजीव नारायण तिवारी ‘राजीव मतवाला’

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