Essay
धर्म बनाम पाखण्ड

आज हम धर्म की चर्चा करते हैं। यह धर्म ही दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। धर्म झूठ कैसे हो सकता है।
यह कोरे मिथ्यावाद पर आधारित है। बिना किसी प्रमाण के हम विश्वास कर लेते हैं। यह विश्वास करना कि संसार में जो कुछ भी होता है, अकस्मात् होता है। जादू-टोना, दैवी शक्तियाँ, मंत्र चमत्कार, स्वप्न, भविष्य-वाणी, प्रकृति के परे की शक्तियों पर अंध विश्वास करना।
धर्म माया महल, अंध विश्वास पर खड़ा है। उसकी दीवारें अंधी श्रृद्धा से बनी हैं। उसकी छत है ही नहीं। यह धर्म अज्ञान का पुत्र है और दुनिया के मनुष्यों में दुःख-दर्द फैलाना इसका पेशा है।
प्रमाण ! संघर्ष, खून और घृणा हर धर्म की नीति है। हजारों वर्षो से इसी दुनिया के मनुष्यों को नाकों-चने चबवाया है। धर्म के कारण युधिष्ठिर ने जुआ खेला, राजपाट हारा। भाइयों और स्त्री को जुए में दांव पर लगाकर गुलाम बनाया। फिर भी किसी माई के लाल ने उंगली नहीं उठाई। धर्म के कारण द्रोपदी ने पाँच पति किए। धर्म के कारण राम को बनवास जाना पड़ा। धर्म के कारण महाभारत संग्राम में पाण्डवों ने अपने गुरुजनों का बध किया। धर्म के कारण हरिशचन्द्र ने राजपाट छोड़ भंगी की दास्ता की। स्त्री को बाजार में बेचा।
धर्म के कारण बुद्ध, शंकर, दयानन्द ने कठिन जीवन बिताया। धर्म के कारण आज करोड़ों विधवाएं हमारे घरों में चुपचाप आँसू पीकर जी रही हैं। करोड़ो अछूत कीड़े-मकोड़े की तरह जी रहे हैं।
धर्म से ही आज हिन्दु-मुसलमान एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं। हजारों वर्षों से पृथ्वी पर उत्पात मचाने वाला धर्म आखिर क्या है? यह क्यों नहीं मनुष्य को मनुष्य से मिलने देता… क्यों नहीं मनुष्य को आजाद रहने देता? हमें इसने गुलाम बना रखा है।
सभी समझते हैं, धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है। शास्त्र में लिखा है- ‘धर्मों रक्षति रक्षितः’। लेकिन
धर्म से तो तबाही आती है। यह बात आज तक किसी के समझ नहीं आई।
कैसे समझ में आती। दुनिया का इतिहास आपने पढ़ा नहीं, पढ़ा भी तो एक कथानक की तरह।
धर्म किस तरह जातियों को तबाह कर रहा है, इसका ज्वलन्त उदाहरण रोम और स्पेन है।
दो हजार वर्षों तक परमेश्वर का यह एजेन्ट इटली में रहा। वहाँ के पोप और पादरी सारे यूरोप को बन्दर की भाँति इशारे पर नचाते रहे। सारा देश मठों, गिरजों, पादरियों और साध्वियों से भर गया।
यूरोप के श्रृद्धालुओं ने इन पादरियों के मठों को धन से भर दिया। सभी सड़के रोम की ओर जाती थीं, जो नोट ले जाने वाली यात्रियों से भरी रहती थी। अन्त में इसी धर्म ने इटली का बेड़ा गर्क कर दिया। उसका पतन होता गया और अन्त में वह मर गया।
स्पेन की आधी दुनिया में हकूमत थी। सारे संसार का सोना चाँदी उसके अधिकार में था। उन दिनों संसार की सभी जातियों की गर्दन धर्म के फौलादी पंजों में फंसी थी, और लोगों की आँखों पर धर्म का परदा पड़ा था। यूरोप की दूसरी जातियों ने सोचना समझना शुरु कर दिया, पर स्पेन धर्म से चिपटा रहा।
यूरोप में विज्ञान का सूरज चमका- पर स्पेन में नहीं। अन्त में उसका धर्म उसे खा गया। ज्ञान के प्रकाश की ओर से उसने आँखें बन्द कर ली।
स्पेन धर्म का शिकार हो गया।
हिन्दुओं का भी बेड़ागर्क इसी धर्म ने किया है। बड़े-बड़े अश्वमेघ यज्ञ और राजसूर्य यज्ञ होते थे। पुरोहित मनमाना राजाओं को नचाते थे। सर्व साधारण उनकी दास्ता करते थे… श्रृद्धा और धर्म के पीछे भेड़ की भाँति चलते थे।
हाँ! मैं श्रृद्धा को भी महत्व नहीं देता। श्रृद्धा तो अंधी बुढ़िया है। अंधविश्वास उसका अंधा बेटा है। इन दोनों का काम लोगों को बेवकूफ बनाना रहा है।
अंधविश्वास का दास कभी सत्य नहीं खोज सकता और धर्म के तो हाथ पैर ही नहीं, अंधविश्वास है। इसी से तो कहते हैं कि धर्म के काम में अक्ल को दखल नहीं।
हमारे हिन्द धर्म में देवताओं की कमी नहीं है फिर भी अंधविश्वास की लाठी पर चलते हुए साई राम, डेरा प्रमुख आदि ना जाने कितनों को पंजों में जकड़ते जा रहे हैं। इतिहास अपने को दोहराता है। शायद हम पतन की ओर बढ़ रहे हैं जैसा कि ऊपर मैंने व्यक्त किया है।
सच्चा धर्म वह है-जहाँ मनुष्य, मनुष्य के प्रति उत्तरदायी हो। धर्म वह है, जहाँ मनुष्य अधिक से अधिक लोकोपकार कर सके। जहाँ हृदय और मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो। दया धर्म है। त्याग धर्म है। संक्षेप में
धर्म वह है जो प्रकाश और जीवन दे। ऐसा हमारे ऋषियों और मुनियों ने किया है, तभी तो हम सनातनी कहलाते हैं। लेखक – राजीव मतवाला