News

प्राइवेसी आपका मौलिक अधिकार है

It's only fair to share...Share on facebook
Facebook
Share on google
Google
Share on twitter
Twitter
Share on email
Email
Share on linkedin
Linkedin

निजता के अधिकार का मुद्दा केंद्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये आधार को अनिवार्य करने संबंधी केंद्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था.

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार को भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया. प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से निजता का अधिकार संरक्षित है.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम सप्रे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. उन्होंने भी समान विचार व्यक्त किए.

इससे पहले प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी कि क्या निजता के अधिकार को संविधान में प्रदत्त एक मौलिक अधिकार माना जा सकता है? यह सुनवाई दो अगस्त को पूरी हुई थी. सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गईं.

इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता सर्वश्री अरविंद दातार, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमणियम, श्याम दीवान, आनंद ग्रोवर, सी ए सुंदरम और राकेश द्विवेदी ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने या नही किए जाने के बारे में दलीलें दीं. अनेक न्यायिक व्यवस्थाओं का हवाला दिया था.सात जुलाई को ये कहा गया था

शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही निर्णय करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे. इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश के समक्ष इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी.

18 जुलाई को ये कहा था
हालांकि, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी. संविधान पीठ के समक्ष विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है.

दो बार फैसला सुना चुका है न्यायालय
न्यायालय ने शीर्ष अदालत की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्रमश: खडक सिंह और एम पी शर्मा प्रकरण में दी गई व्यवस्थाओं के सही होने की विवेचना के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का निर्णय किया था. इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं है. खडक सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एम पी शर्मा प्रकरण में 1950 में फैसला सुनाया था.

19 जुलाई को पीठ ने की थी यह टिप्पणी
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रखते हुए सार्वजनिक दायरे में आई निजी सूचना के संभावित दुरूपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा ‘एक हारी हुई लड़ाई’ है. इससे पहले, 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि निजता का अधिकार मुक्म्मल नहीं हो सकता और सरकार के पास इस पर उचित प्रतिबंध लगाने के कुछ अधिकार हो सकते हैं.

केंद्र ने यह कहा था
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है. केंद्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था, गरीब लोगों को जिसे जीवन, भोजन और आवास के उनके अधिकार से वंचित करने के लिये प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.

स्वतंत्रा के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल
इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुड़े अनेक सवाल पूछे. इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है. उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है.

क्या है आर्टिकल 21
संविधान की धारा 21 नागरिकों के जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है. इसके मुताबिक किसी भी नागरिक को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है. ऐसा केवल कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से ही किया जा सकता है.

यह एक ऐतिहासिक फैसला है, निजता एक मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल आधार पर कुछ नहीं कहा हैः प्रशांत भूषण

1947 में जो आजादी मिली थी आज उसे और समृद्ध कर दिया गया है. निजता व्यक्तिगत आजादी का मूल है. आर्टिकल 21 को नया आयाम मिला हैः पी चिदंबरम

Tags

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Hello world.
Login
Close

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker