Essay

यह तो अब चलन है…

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(धन कुबेरों की जमात के लिए जिन्दगी मौजमस्ती का दूसरा नाम बन चुकी है)

वेश्यावृत्ति को बढ़ावा किसने दिया और क्यों, ये लम्बे विवाद का विषय है| चाहे मान हो या अपमान, एक धंधे के रूप में पूर्व समाज में फैला है| बदले दौर में इस धंधे के स्वरूप में भी तेजी से बदलाव आया है| इस समाज को अंधी भौतिकता के लें या अतृप्त यौन संबंधों की उपज तथा कथित सभ्य समाज में भी इसने जगह बना ली है, और इस सभ्य समाज की उपज है कालगर्ल्स…|

अधिकाँश मामलों में कारण भले ही तंगी या गरीबी हो, मगर सच्चाई तो यही है कि कालगर्ल्स, सभ्य समाज में कुछ ज्यादा नहीं तो पूरे देश में काफी हद तक इस धंधे में अपनी जगह बना ली है|

शहरों में कालगर्ल्स रिक्शे में बैठकर ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है| फिर सौदा पटता है| कुछ कालगर्ल्स ने होटल वालों से सांठ – गांठ क्र रखी है, जो ग्राहकों के कमरे का किराया सामान्य डॉ से दुगना वसूल करते है| इस रिक्शाछाप कालगर्ल्स का दायरा सभी शहरों ओ महानगरों में है| ये कालगर्ल्स अक्सर बीएस स्टाप, रेलवे, कचेहरी, अस्पताल, चौक ओ भीड़ वाले चौराहे के आस-पास मंडराती दिखाई देंगी| ये कालगर्ल्स पहले तो हजार रूपये मांगेंगी फिर होगा दुकानदारों कि तरह मोलभाव और फिर बात बनेगी लगभग पांच सौ रूपये में|

वेश्यावृत्ती को बढ़ावा देने में यहाँ के होटल भी पीछे नहीं है| कुछ तो होटलों में ही लडकियां मुहैय्या करवा देंगे| एक धंधे वाली युवती से जब पूछा गया कि वह यह घिनौना काम क्यों करती है? तो उसका जवाब था- मेरा पीटीआई शराब पीता है, जुआ खेलता है| पांच बच्चे हैं मेरे| उन्हें खाना कौन खिलायेगा? और वह रिक्शे पर बैठकर चलती बनी, ग्राहक की तलाश में| यह कहानी एक की नहं बल्कि इस धंधे में लिप्त अन्य युवतियों की भी हो सकती है|

अब तो होटल में कालेज की लड़कियां कालगर्ल्स का व्यवसाय करती हैं तथा पैसे वालों को आसानी से मिल जाती हैं| कई लडकियां तो सिर्फ डिनर और वियर-सियर पिलाने के लिए ही रात गुजारने आ जाती हैं| कुछ लडकियां रेस्टोरेंट मालिकों द्वारा ही उपलब्ध कराई जारः हैं| मालिक इसके बाद होने वाले कार्य से मिलने वाली धनराशि का बड़ा भाग स्वम् रख लेते हैं तथा लड़कियों को कम पैसे देते हैं| कुछ लडकियां आनन-फानन में धनवान बनने की लालसा से तथा कुछ पेट की आग पर पानी डालने के लिए कालगर्ल्स का जामा पहनती हैं और चाहकर भी इस दलदल से नहीं निकल पाती हैं|

शहरों तथा महानगरों व कस्बों में इन रिक्शाछाप कालगर्ल्स के अतिरिक्त एनी कालगर्ल्स का भी काफी बोलबाला है जो एक रात के लिए पांच हजार से लेकर पच्चास हजार रूपये तक लेती हैं| ये थोड़ी बहुत पढी लिखी होती हैं तथा बाहरी छेत्र से आकर धंधा करती हैं| इनके पक्के अड्डे कही नहीं हैं| ये ग्राहक की मर्जी से चलती हैं तथा कुछ ख़ास होटलों में भी आकर बैठती हैं|

मौज मस्ती के लिए बड़े शहरों व महानगरों में जिन्दगी की मौज मस्ती के लिए टाइम कालगर्ल्स भी उपलब्ध है| अकेले राजधानी दिल्ली में इन कालगर्लों की संख्या हजारों में होगी| निम्न और निम्न वर्ग के परिवारों की लड़कियों के आँखों में फटाफट अमीर बनने के सपने तरते देखे जा सकते हैं| धन कुबेरों की जमात के लिए जिन्दगी मौज-मस्ती का दुसरा नाम बन चुकी है| व्यक्तिगत या सामाजिक नैतिकता और पारम्परिक संस्कार वे कब का पीछे छोड़ चुकी हैं| सही गलत में फर्क करना उनके लिए मुस्किल है| अमीरी की एक ख़ास उँचाई वे हासिल क्र चुके हैं| लाइफ को इन्जवाय करना चाहते हैं| कालगर्ल्स व्यवसाय विश्व बेल की तरह फल-फूल रहे और कुकुरमुत्तों की तरह होटल हेल्थ क्लब व मसाज सेंटर कालगर्लों को ग्राहक पटाने के लिए वरदान साबित हुए हैं|

पिछले दिनों दिल्ली में चलने वाली कुछ ऐसी पार्टियों का पता चला है, जिसमें उगल आपस में अपनी पत्नियों की अदला-बदली करते हैं| देर शाम से शुरू होने वाली इस पार्टी में पांच सात युगल जोड़ी हिस्सा लेते है|

पहले पुरषों के बीच स्कॉच व मंहगी विदेशी शराब और महिलाओं के बीच वीयर, जीन व वाइन का दौर चलता है| सुरूर में आने के बाद एक घड़े में पुरुष अपनी कार की चाबी दाल देते हैं| तेज संगीत के साथ डांस शुरू हो जाता है| एकाएक ख़ास समय पर अँधेरा छा जाता है और नशे में धुत पुरुष उत्तेजना से उत्तेजित होकर घड़े में एक-एक चाभी निकय्ते हैं| जिसके हाथ जो चाभी लगे, ओग कार और उसकी बीबी और रात उसकी……|

इसमें कोई शक नहीं है कि इस तरह की गन्दी मानसिकता वाले लोगों की संख्या बहुत थोड़ी है| आधुनिकता की ये अंधी दौड़ हमें किस मुकाम पर पहुँचाएगी, ये केवल कल्पना की जा सकती है| इस विश्व बेल को आखिर कैसे रोका जा सकता है?   Writen By- Rajeev Matwala

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