‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता/ एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।’ अगर बहुत संक्षेप में ‘ट्यूबलाइट’ के बारे में बताना हो तो हिंदी गजल के सम्राट दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। इस फिल्म का मूल संदेश है- यकीन से पत्थर को भी हिलाया जा सकता है। इसी भाव के ईर्द-गिर्द पूरी फिल्म का ताना-बाना बुना गया है। यह युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी अमेरिकी फिल्म ‘लिटिल बॉय’ से प्रेरित है। बस अंतर ये है कि जहां ‘लिटिल बॉय’ पिता-पुत्र के प्यार की कहानी है, वहीं ‘ट्यूबलाइट’ में निर्देशक कबीर खान ने दो भाइयों के प्यार की कहानी को आधार बनाया है।
कुछ ऐसी है ट्यूबलाइट की कहानी कुमायूं क्षेत्र (वर्तमान में उत्तराखंड) के जगतपुर गांव में दो भाई हैं लक्ष्मण सिंह बिष्ट (सलमान खान) और भरत सिंह बिष्ट (सोहेल खान)। उनके माता-पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। रामायण के विपरीत यहां लक्ष्मण बड़ा है और भरत छोटा। लक्ष्मण को सब ट्यूबलाइट कहते हैं, क्योंकि उसे कोई भी बात जल्दी समझ में नहीं आती। वह थोड़ा मंदबुद्धि है।
लक्ष्मण उम्र में तो बड़ा है, लेकिन बड़े भाई का कर्तव्य छोटा भाई भरत उठाता है। जब दोनों बच्चे थे, तब एक दिन उनके गांव में गांधीजी आए थे, जिन्होंने कहा था कि यकीन से कुछ भी हो सकता है। लक्ष्मण पूछता है कि यकीन कहां मिलता है तो गांधी कहते हैं कि यकीन आदमी के दिल में होता है। ये बात भोले-भाले लक्ष्मण के दिल में बैठ जाती है। जब वह बड़ा होता है तो एक दिन गांव में एक जादूगर (शाहरुख खान) आता है, जो दिखाता है कि यकीन से पत्थर को हिलाया जा सकता है।
इसी बीच सन 1962 आता है। भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव चरम पर है। युद्ध की आशंका सामने है। कुमायूं रेजिमेंट के मेजर राजबीर टोकस (यशपाल शर्मा) जगतपुर के नौजवानों से सेना में भर्ती होने की अपील करते हैं। लक्ष्मण, भरत और उनका साथी नारायण (जीशान अय्यूब) भी सेना में भर्ती होने के लिए जाते हैं, लेकिन उनमें से चुनाव सिर्फ भरत का होता है।
जगतपुर के गांधीवादी बन्ने चाचा (ओमपुरी) का मानना है कि युद्ध नहीं होगा, क्योंकि देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू युद्ध नहीं चाहते। भरत सीमा पर चला जाता है। चीन भारत पर हमला कर देता है। लक्ष्मण को विश्वास है कि उसका छोटा भाई भरत जल्दी ही लौट कर आएगा, लेकिन युद्ध समाप्त होने पर भी वह नहीं आता। फिर भी लक्ष्मण अपना यकीन कमजोर नहीं होने देता है। इस बीच चीनी मूल की भारतीय लिलिंग (जू जू) अपने बेटे गुओ (माटिन रे तांगू) के साथ रहने के लिए जगतपुर आती है। उसके पिता जोधपुर की जेल में बंद हैं।
जगतपुर के लोग, खासकर नारायण उन लोगों पर शक करता है और चीनी समझ कर नफरत करता है। लेकिन बाद में लक्ष्मण की गुओ और लिलिंग से दोस्ती हो जाती है।