जंगल में हवा चली है|
वो देखो मनचली है|
गाने लगा भ्रमर दल,
तू किस तरह कली है|
संध्या की स्वप्न माला,
क्यों आग में जली है|
अव्याहत अनुवाद देख,
याद में ढली है|
अब ताजगी मिलेगी,
क्या देह संदली है|
अंदाज नया लगता,
तू धुप में जली है|
मैं तो तेरी ही जद में,
छाया स्वयं छली है|
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